मुलाकातों की हमें ज़रुरत नहीं , बस तुम हमारे दिल में रहो इतना ही बहुत है
देखते है हम दोनों कैसे जुदा हो पाएंगे , तुम मुक्क़द्दर का लिखा मानते हो , हम दुआ आजमाएँगे
कितनी मासूमियत से उन्होंने हमें अपनी “जान ” कह कर हमें “बेजान ” कर दिया
तेरी सिर्फ एक झलक ने खरीद लिया हमें , बहुत गुमान था हमें कि हम बिकने वालों में से नहीं है
सिर्फ हमे ही क्यूँ ?? उनकी आँखों को भी सजा दो, जो कत्ल सरेआम करती है